नैनीताल : राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (से.नि) ने आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान(एरीज) में स्थापित चार मीटर आईएलएमटी(इंटरनेशनल लिक्विड मिरर टेलीस्कोप) का किया वर्चुअली उद्घाटन

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नैनीताल ::- राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (से.नि) ने मंगलवार को राजभवन देहरादून से आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान(एरीज) नैनीताल में स्थापित चार मीटर आईएलएमटी(इंटरनेशनल लिक्विड मिरर टेलीस्कोप) का वर्चुअली उद्घाटन किया। इस कार्यक्रम में केन्द्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह भी वर्चुअल रूप से उपस्थित रहे।


उद्घाटन के अवसर पर राज्यपाल ने कहा कि आईएलएमटी के रूप में एक और शक्तिशाली टेलीस्कोप की स्थापना न केवल भारत और इसके सहयोगी देशों के लिए बल्कि पूरे विश्व लिए गौरव की बात है। यह भारतीय वैज्ञानिकों की अनुसंधान के क्षेत्र में गहन प्रतिभा और विश्व समुदाय के साथ सहभागिता का यह उत्कृष्ट उदाहरण है। उन्होंने कहा कि भारत के वैज्ञानिक दुनिया के वैज्ञानिकों के साथ शोध एवं अनुसंधान के हर क्षेत्र में एक बड़ी भूमिका निभा रहे हैं जो हम सभी के लिए गर्व की बात है।


राज्यपाल ने कहा कि यह महान उपलब्धि हमारे वैज्ञानिकों की गहरी सोच और वैज्ञानिक प्रगति के प्रति भारत सरकार की प्रतिबद्धता का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है। अंतरिक्ष विज्ञान की अनंत सीमाओं को जानने और समझने की दिशा में यह एक दूरगामी कदम है। यह टेलीस्कोप भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान की प्रगति के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित होगी। इस टेलीस्कोप की स्थापना से जहां ब्रह्मांड के रहस्यों को खोजने में मदद मिलेगी वहीं प्रदेश में एस्ट्रो-टूरिज्म के क्षेत्र में भी मदद मिलेगी। इसके साथ-साथ ही अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में अनुसंधान के लिए संभावनाओं के द्वार खोलेगा।


राज्यपाल ने कहा कि आईएलएमटी हमारे अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में गहरी जिज्ञासा रखने वाले वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं के लिए एक नया वरदान साबित होगी और ब्रह्मांड के बारे में हमारे शोध एवं अनुसंधान के क्षेत्र में सहायक होगी। उन्होंने इस परियोजना से जुड़े देशों बेल्जियम, कनाडा, पोलैंड और उज्बेकिस्तान के वैज्ञानिकों, विशेषज्ञों और शोधकर्ताओं को इस नई उपलब्धि के लिए बधाई दी। उन्होंने कहा कि यह विज्ञान के क्षेत्र में हमारे उल्लेखनीय अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को भी प्रदर्शित करने वाला एक मिशन है। इस अवसर पर एरीज के निदेशक डॉ. दीपांकर बनर्जी सहित विभिन्न देशों के वैज्ञानिक एवं प्रतिनिधियों ने प्रतिभाग किया।


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