कुमाऊं विश्वविद्यालय नैनीताल के शोध निदेशक प्रो ललित तिवारी ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय हरियाणा के मानव संसाधन केंद्र द्वारा आयोजित रिफ्रेशर कोर्स पर्यावरणीय चुनौती के अंतर्गत औषधीय पौधे वितरण एवं चुनौती पर व्याख्यान दिया । ऑनलाइन माध्यम के व्याख्यान में प्रो. तिवारी ने कहा हर्बल पौधे के औषधीय उपयोग का वर्णन सुमेरियन सभ्यता 3000बी सी में मिलता है सुश्रुत संहिता 600बी सी में 700औषधीय पौधे का जिक्र मिलता है ।उन्होंने कहा की भारत में 70से 80 प्रतिशत औषधीय पौधों का दोहन जंगल से ही किया जाता तथा 46मिलियन डॉलर का कारोबार भी होता है।विश्व में 12 से 18प्रतिशत पौधे के औषधीय गुणों की जानकारी अभी तक मिली है तथा इस पर शोध किया जा रहा है।प्रो तिवारी ने नीम ,अश्वगंधा अदरक आंवला , वसका ,पेनिसिलिन,अट्रोपाइन, पपैंन,,रिसर्पिन, अतीश ,थुनेर , सातवा,वन अजवाइन , रागा , हरड, ईसबगूल, हीना , एली वेरा ,पीपली,, कूट,,डॉन पत्ती, सहित ऋषि चवन्य तथा अश्विनी कुमार के अष्टवर्ग पौधे के पॉपुलेशन एवं स्टेटस पर व्यापक प्रकाश डाला।।प्रो तिवारी ने कहा की 2200मीट्रिक टन का कारोबार उत्तराखंड में होता है।।उन्होंने इन पौधो के दोहन पर सख्त पॉलिसी बनाने तथा इनके संरक्षण के लिए व्याहारिक कदम उठाने का आह्वान किया तथा विश्व पटल में अंतरराष्ट्रीय सहयोग एवं औषधि पौधा पर कॉर्पस फंड बनाने तथा इसकी खेती को बड़ावा देने को कहा। उत्तराखंड में फलों एवं औषधि पौधो की खेती की अपार संभावनाएं है। रिफ्रेशर कोर्स में विभिन्य प्रदेशों के शिक्षक प्रतिभाग कर रहे है।